शनिवार, 30 अगस्त 2008

प्रिंट व आनलाईन मासिक पत्रिका

समीर भाई,
जोहार,


आदरणीय बुधराम यादव जी के प्रयास के समाचार को
पढ कर अति प्रसन्‍नता हुई,हमें उनका आर्शिवाद व संपादन
सहयोग मिलता रहे तो गुरतुर गोठ को आप-हम नईउंचाईयों में ले जायेंगें ।
मेरे विचार से 'गुरतुर गोठ' को chhattisgarhi का "प्रतिनिधि ब्लॉग"
का रूप दिया जाना है.....शेष तो उसके साथ होता ही रहेगा।
आपने इस हेतु क्या योजना सोच रखा है यह जरुर बताएं।
वर्तमान में मैं भी यही चाहता हूं, किन्‍तु भविष्‍य में आप लोगों
कासहयोग रहा तो इसे प्रिंट व आनलाईन मासिक पत्रिका रूप
देनें की मंशा हैयदि आपको दिल्‍ली में समाचार-पत्रिकाओं के
शासकीय पंजीयन संबंधीकोई जानकारी आदि मिले तो प्राप्‍त
कीजियेगा, इस नाम से पत्रिका पंजीयन भीकरा लेंगें,
अभी दो चार वर्षों बाद प्रदेश में छत्‍तीसगढी पत्र-पत्रिकाओंके
बुलबुले फूटने वाले हैं, मैं चाहता हूं कि उसके पूर्व ही
हम कम से कमनेट में तो 'गुरतुर गोठ' को प्रतिष्ठित कर लेवें ।


संजीव
--http://aarambha.blogspot.com
www।gurturgoth.कॉम

'गुरतुर गोठ' "प्रतिनिधि ब्लॉग"

संजीव भाई जोहार !


आदरणीय बुधराम यादव जी ने बताया है की उनकी 'गुरतुर गोठ'
के सम्बन्ध में अनेक रचनाकारों से चर्चा हुई ,
सकारात्मक प्रतिसाद मिला है......अब हमें इसके लिए रचनाएँ
और उन्हें पोस्ट करने की स्वीकृति भी मिलती जायेंगी.
आपने ब्लॉग को मूर्त रूप देने में जो सहयोग दिया है...
उसके लिए साधुवाद.उसे और अधिक संस्कारिक कलेवर,
और user friendly बनाने के लिए आपके निरंतर सहयोग
की आवश्यकता रहेगी.....

मेरे विचार से 'गुरतुर गोठ' को chhattisgarhi का "प्रतिनिधि ब्लॉग"
का रूप दिया जाना है.....शेष तो उसके साथ होता ही रहेगा।
आपने इस हेतु क्या योजना सोच रखा है यह जरुर बताएं।

मै अपने पदस्थापना क्षेत्र के chhattisgarhiya
भाइयों को जोड़ने का प्रयास करता रहूंगा।
आरंभिक चरण में दोनों ब्लॉग पर आपकी सामान दृष्टी
आवश्यक होगी.......

आशा है चिंता करेंगे।

शेष ....स्नेह..........!!!

समीर.

"भगीरथ बाना"

संजीव भाई ॥!



आज आपके विस्तृत ईमेल से आपके "भगीरथ बाना" के
सार्थकता का परिचय मिला। अव्यवसायिक, अवैतनिक
होकर ही ऐसे कार्यों कि आरम्भ होता है।
किन्तु "मैं तो अकेला हीचला था जानिबे मंजिल, लोग
मिलते गए कारवां बनता गया" भी आवश्यक है।
आदरणीय बुधराम यादव जी से मेरी चर्चा हुई
उन्होंने प्रथमतः आपके कार्यों को सराहा तदुपरांत
आपके द्वारा प्रस्तावित सम्मान को भी स्वीकार किया।
किन्तु वह नेट प्रयोक्ता नहीं हैं, अतएव रचनाओं के लिए
स्वीकृति,संग्रहण, संपादन व्यक्तिशः ही कर सकेंगे।
तथापि आपसे फोन पर चर्चा करने की इच्छा व्यक्त की है।
अपना सुलभटेलीफोन नंबर प्रेषित करने का कष्ट करें
ताकि "आरम्भ" के उपरांत भी मेरी गतिशीलता बनी रहे.


पुनश्च.....! नमस्कार
समीर.....

जोहार समीर भाई !

हम सब इस छत्‍तीसगढी भाषा के उन्‍नति के राह के सहयोगी हैं भाई ...........
एक एक सीढी चढते जाना है, जब तक उत्‍साह रहे .........और उत्‍साह हमारी माटी निरंतर
निरंतर कायम रखेगी, ऐसी कामना है ।
समीर भाई, मुझमें छत्‍तीसगढी साहित्‍य की विशेष योग्‍यता नहीं है मई सिर्फ़
नेट तकनीक का सही उपयोग के लिये ही प्रयास कर रहा हूँ
इस कार्य से मैं साहित्‍य से भी रूबरू हो रहा हूं और नेट कनेक्‍शन का
सदुपयोग भी हो रहा है ।
वर्तमान में नेट पर कोई भी छत्‍तीसगढी का पोर्टल नहीं है,
लोकाक्षर आदरणीय नंद कुमार जी तिवारी एवं जय प्रकाश मानस के द्वारा
नेट से हटालिया गया है, मेरी समझ में इसके व्‍यावसायिक कारण हैं ।
हमें अपनी भाषाके लिये किसी भी प्रकार की व्‍यावसायिकता नहीं अपनानी है
जहां से भीजितनी भी छत्‍तीसगढी सामाग्री मिले नेट में सर्वसुलभ कराना है ।
इसकेलिये जो दो प्रकार की समस्‍या है पहला प्रिंट को पुन: टाईप करना दूसरालेखक से अनुमति प्राप्‍त करना, उसे दूर करना है ।हम सब को अपनी प्रतिबद्वता समझनी होगी तभी यह संभव हो पायेगा,
आप आदरणीयबुधराम यादव जी के सहयोग से लेखकों से अनुमति व
साहित्‍य संकलन कीव्‍यवस्‍था करने का प्रयास करें, मेरी मंशा गुरतुर गोठ को
नेट मेग्जिन का शक्‍ल देना है जिसमें आप, युवराज भाई, दीपक भाई व मैं स्‍वयं
लगातारप्रयास करेंगें, आदरणीय बुधराम यादव जी को बतौर संपादक हमारी टीम
केसाहित्‍य संपादन के लिये मैं जोडना चाहता हूं यदि वे नेट प्रयोक्‍ता होंतभी
यह संभव हो पायेगा ।छत्‍तीसगढ में कुछ नेट दुनिया के मठाधीश भी हैं जो
पूर्णतया विघ्‍नसंतोषी हैं उनसे मैं विगत दो वर्षों से वाकिफ हूं वे हमें डामिनेट
करनेका हर संभव प्रयास करेंगें पर हम साथ रहेंगें तो सफल हो सकते हैं ।

आप मन ला 'दोस्‍ती दिवस' के कोरी कोरी बधई ।

शेष फिर ............
संजीव

'गुरतुर गोठ'

नमस्कार संजीव भाई...!


आपने 'गुरतुर गोठ' में ब्लॉग सदस्यता देकर उपकृत किया
इस हेतु आपको धन्यवाद देना मेरी कृपणता होगी.
इस विश्वास का ऋण कहें या मूल्य की भरपाई आपके उद्येश्य की पूर्ति में
सहायक बनकर ही की जा सकेगी, ऐसा मेरा मानना है......शनैः शनैः आपके कार्यों से परिचित हो रहा हूँ..... तो 'chhattisagarhiya' से स्नेह वर्धित हो रहा है।

ब्लॉग सदस्यता ग्रहण कर लिया है .......

स्नेह बनाये रखें....
समीर.....

बुधवार, 27 अगस्त 2008


जोहार समीर भाई,
सब इस छत्‍तीसगढी भाषा के उन्‍नति के राह के सहयोगी हैं भाई ...........एक एक सीढी चढते जाना है, जब तक उत्‍साह रहे .........और उत्‍साह हमारी माटी निरंतर निरंतर कायम रखेगी, ऐसी कामना है ।समीर भाई, मुझमें छत्‍तीसगढी साहित्‍य की विशेष योग्‍यता नहीं है मई सिर्फ़ नेट तकनीक का सही उपयोग के लिये ही प्रयास कर rahaa hun. इस कार्य से मैं साहित्‍य से भी रूबरू हो रहा हूं और नेट कनेक्‍शन कासदुपयोग भी हो रहा है ।
वर्तमान में नेट पर कोई भी छत्‍तीसगढी का पोर्टल नहीं है, लोकाक्षरआदरणीय नंद कुमार जी तिवारी एवं जय प्रकाश मानस के द्वारा नेट से हटालिया गया है, मेरी समझ में इसके व्‍यावसायिक कारण हैं । हमें अपनी भाषाके लिये किसी भी प्रकार की व्‍यावसायिकता नहीं अपनानी है जहां से भीजितनी भी छत्‍तीसगढी सामाग्री मिले नेट में सर्वसुलभ कराना है ।
इसकेलिये जो दो प्रकार की समस्‍या है पहला प्रिंट को पुन: टाईप करना दूसरालेखक से अनुमति प्राप्‍त करना, उसे दूर करना है ।
हम सब को अपनी प्रतिबद्वता समझनी होगी तभी यह संभव हो पायेगा, आप आदरणीयबुधराम यादव जी के सहयोग से लेखकों से अनुमति व साहित्‍य संकलन कीव्‍यवस्‍था करने का प्रयास करें, मेरी मंशा गुरतुर गोठ को नेट मैग्‍जीनका शक्‍ल देना है जिसमें आप, युवराज भाई, दीपक भाई व मैं स्‍वयं लगातारप्रयास करेंगें, आदरणीय बुधराम यादव जी को बतौर संपादक हमारी टीम केसाहित्‍य संपादन के लिये मैं जोडना चाहता हूं यदि वे नेट प्रयोक्‍ता होंतभी यह संभव हो पायेगा ।
छत्‍तीसगढ में कुछ नेट दुनिया के मठाधीश भी हैं जो पूर्णतया विघ्‍नसंतोषी हैं उनसे मैं विगत दो वर्षों से वाकिफ हूं वे हमें डामिनेट करनेका हर संभव प्रयास करेंगें पर हम साथ रहेंगें तो सफल हो सकते हैं ।
आप मन ला 'दोस्‍ती दिवस' के कोरी कोरी बधई ।
शेष फिर ............

संजीव

उद्येश्य की पूर्ति

नमस्कार संजीव भाई...!


आपने 'गुरतुर गोठ' में ब्लॉग सदस्यता देकर उपकृत किया
इस हेतु आपको धन्यवाद देना मेरी कृपणता होगी.
इस विश्वास का ऋण कहें या मूल्य की भरपाई आपके उद्येश्य की पूर्ति में
सहायक बनकर ही की जा सकेगी, ऐसा मेरा मानना है......शनैः शनैः आपके कार्यों से परिचित हो रहा हूँ..... तो 'chhattisagarhiya' से स्नेह वर्धित हो रहा है।ब्लॉग सदस्यता ग्रहण कर लिया है .......



स्नेह बनाये रखें....
समीर.....
http://manorath-sameer.blogspot.com/
http://www.gurturgoth.com/

प्रयासों के लिए पट

संजीव भाई !

ऑरकुट मित्र के रूप में आपसे भेंट ने अवचेतन मन के कंदराओं में विचरण करते अनेक अनगढे विचारों को गढ़ने एवम साकार रूप देने के प्रयासों के लिए पट खोलने का कार्य किया है, मेरे शासकीय दायित्य के साथ जिसकी सबसे अधिक अनियमितता होती है वो है समय.........!!!
तथापि आपके प्रयासों का जितना भी अंश ( चाहे वह ०.१% ही सही )मैंने देखा है, अनुकरनिय है। समय का न केवल आपने सदुपयोग किया है अपितु उस पर 'मनमानी' नियंत्रण भी कर रखा है......शायद इसीलिए आप अपने दैन्दिनी से पृथक इतना....आ...आ॥ समय निकाल लेते हैं। मेरे द्वारा जो रचनाएँ आपको प्रेषित की गयी हैं, उन पर आपके विचार saadar pratikshit हैं, इसके अतिरिक्त समय-समय पर मेरे द्वारा वांछित मांगों को अपनी प्राथमिकता सूची में स्थान देंगे. इसी कामना के साथ......आपके विचारों से लाभान्वित होता रहूंगा.....आपका मेल अभी रिसीव किया॥
धन्यवाद !

स्नेहाकांक्षी,
समीर

छत्तीसगढिया उर्जा

धन्यवाद समीर भाई,
"आपने आरम्भ तो कर दिया है......मैं अक्सर यह सोचता हूँ कि रचनात्मकता का समय-प्रबंधन के साथ सम्बन्ध अनुलोम हैअथवा विलोम ?मेरे कार्य ( शासकीय सेवा ) को पारंपरिक ढंग से परिभाषित करना न्यायोचितनहीं होगा फिर भी यह उल्लेखनीय तो कतई नहीं.....आप के प्रेरणा, ज्ञान, माध्यम एवं अप्रतिम उर्जा का स्त्रोत क्या है संजीव भाई.....!"
पठन-पाठन का प्रयत्न निरंतर है...... मेरासमीर भाई,
रचनात्मकता तो स्वाभाविक प्रक्रिया है इसे मैं समय प्रबंधन केकिसी दायरे में नहीं रखता, हां व्यस्तता के समय में जो मन में उमडते हैंउसे छोटी डायरी में समेट लेता हूं बाद में समय मिलने पर ताने बाने बुनताहूं । आपने अनुलोम व विलोम के संबंध में जो पूछा है उसके संबंध में मैंअभी चिंतन कर रहा हूं, बहुत ही गहरा प्रश्न है यह बाद में शेयर करूंगा ।
आपके कार्य से मैं भली भांति परिचित हूं, आपके लिये रचनात्मकता व समयप्रबंधन बहुत कठिन कार्य है फिर भी आपमें जो उर्जा है उससे में स्वयंप्रभावित हूं , यह छत्तीसगढिया उर्जा है भाई जो स्वाभाविक रूप से हम सबके पास है हमने उसे जगाया औरों नें उसे नहीं जगाया ।
पठन पाठन तो टानिक है इससे संप्रेषण व प्रस्तुति बेहतर होती है ।
आपको मेल लिख रहा हूं और भिलाई क्राईम सीएसपी श्री कोटवानी जी का फोन भीरिसीव कर रहा हूं बढिया संयोग है । हा हा हा .....

मंगलवार, 26 अगस्त 2008

संजीव भाई जोहार !

आपके सुझाव रूपी आदेश के अनुपालन का प्रयत्न कर रहा हूँ, कुछ तकनीकी अड़चन भी आ रही हैं अतएव जो यथाशीघ्र संभव हो सका है, आप तक पहुँचाने का प्रयास है। हाँ आप चिंता करते रहेंगे तो परिमार्जित होता रहेगा.मेरे पूर्व के जिज्ञासाओं का उत्तर नहीं मिला है.....ईश्वर आपके भागीरथी प्रयास के लिए साधन और साध्य उपलब्ध कराएँ, यही कामना है.!

आपका,समीर.....

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अंतर्मन

मेरो मन अनत कहाँ सुख पायो, उडी जहाज को पंछी फिरि जहाज को आयो.....
जब ... कीबोर्ड के अक्षरों संकेतों के साथ क्रीडा करता हूँ यह कभी उत्तेजना, कभी असीम संतोष, कभी सहजता, तो कभी आक्रोश के लिए होता है. और कभी केवल अपने समीपता को भाँपने के लिए...

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