शनिवार, 30 अगस्त 2008

जोहार समीर भाई !

हम सब इस छत्‍तीसगढी भाषा के उन्‍नति के राह के सहयोगी हैं भाई ...........
एक एक सीढी चढते जाना है, जब तक उत्‍साह रहे .........और उत्‍साह हमारी माटी निरंतर
निरंतर कायम रखेगी, ऐसी कामना है ।
समीर भाई, मुझमें छत्‍तीसगढी साहित्‍य की विशेष योग्‍यता नहीं है मई सिर्फ़
नेट तकनीक का सही उपयोग के लिये ही प्रयास कर रहा हूँ
इस कार्य से मैं साहित्‍य से भी रूबरू हो रहा हूं और नेट कनेक्‍शन का
सदुपयोग भी हो रहा है ।
वर्तमान में नेट पर कोई भी छत्‍तीसगढी का पोर्टल नहीं है,
लोकाक्षर आदरणीय नंद कुमार जी तिवारी एवं जय प्रकाश मानस के द्वारा
नेट से हटालिया गया है, मेरी समझ में इसके व्‍यावसायिक कारण हैं ।
हमें अपनी भाषाके लिये किसी भी प्रकार की व्‍यावसायिकता नहीं अपनानी है
जहां से भीजितनी भी छत्‍तीसगढी सामाग्री मिले नेट में सर्वसुलभ कराना है ।
इसकेलिये जो दो प्रकार की समस्‍या है पहला प्रिंट को पुन: टाईप करना दूसरालेखक से अनुमति प्राप्‍त करना, उसे दूर करना है ।हम सब को अपनी प्रतिबद्वता समझनी होगी तभी यह संभव हो पायेगा,
आप आदरणीयबुधराम यादव जी के सहयोग से लेखकों से अनुमति व
साहित्‍य संकलन कीव्‍यवस्‍था करने का प्रयास करें, मेरी मंशा गुरतुर गोठ को
नेट मेग्जिन का शक्‍ल देना है जिसमें आप, युवराज भाई, दीपक भाई व मैं स्‍वयं
लगातारप्रयास करेंगें, आदरणीय बुधराम यादव जी को बतौर संपादक हमारी टीम
केसाहित्‍य संपादन के लिये मैं जोडना चाहता हूं यदि वे नेट प्रयोक्‍ता होंतभी
यह संभव हो पायेगा ।छत्‍तीसगढ में कुछ नेट दुनिया के मठाधीश भी हैं जो
पूर्णतया विघ्‍नसंतोषी हैं उनसे मैं विगत दो वर्षों से वाकिफ हूं वे हमें डामिनेट
करनेका हर संभव प्रयास करेंगें पर हम साथ रहेंगें तो सफल हो सकते हैं ।

आप मन ला 'दोस्‍ती दिवस' के कोरी कोरी बधई ।

शेष फिर ............
संजीव

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अंतर्मन

मेरो मन अनत कहाँ सुख पायो, उडी जहाज को पंछी फिरि जहाज को आयो.....
जब ... कीबोर्ड के अक्षरों संकेतों के साथ क्रीडा करता हूँ यह कभी उत्तेजना, कभी असीम संतोष, कभी सहजता, तो कभी आक्रोश के लिए होता है. और कभी केवल अपने समीपता को भाँपने के लिए...

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