मंगलवार, 14 अक्तूबर 2008

डीएनए टेस्ट का राज ?


यूँ तो बाबुल का घर छोड़ पिया के घर जाने वाली हर लड़की के ढेरों सपने होते हैं. और डोली में बैठते ही वह इन्हें साकार करने का ताना-बाना बुनने लगती है. पर समलिया इन लड़कियों से एकदम अलग निकली, उसने तो डोली में बैठते ही अपने सपने को साकार करने का नया ही तरीका अख़तियार करने का संकल्प ले लिया...!!!!

जबलपुर जिले में यह पहला केस है, जिसमे अपराध की विवेचना में डीएनए [ डी आक्सी राइबो नुक्लिक असिड ] टेस्ट का सहारा लिया गया.

डीएनए प्रोफाइलिंग विज्ञान के उन सबसे विश्वसनीय परीक्षणों में है. जिसकी सत्यता अरबों में एक त्रुटि ही होने की संभावना के कारण न्यायालय द्वारा विशेषज्ञ अभिमत के रूप में निर्विवाद स्वीकार किया जाता है. इसके लिए सेम्पलिंग, नमूना संरक्षण और परीक्षण कराना विवेचना एजेन्सी की कार्यदक्षता को पहले ही कड़े कसौटी से गुजारा जाना होता है.

..........." प्रताप के बारे में पता करने के लिए पुलिस टीम जब मझगवां थाने के गाँव कचनारी पहुँची तो वहाँ बताया गया कि इस नाम का कोई व्यक्ति उस गाँव और आस पास है ही नहीं. प्रताप द्वारा अपना पता ग़लत बताये जाने को लेकर पुलिस के शक की सुई घुमने लगी. पुलिस ने समलिया से आकर उसके बारे में पूछताछ की, पर समलिया से भी प्रताप के बारे में कोई महत्वपूर्ण जानकारी हासिल नहीं हो सकी. DSP के निर्देशन में काम कर रही टीम ने अपना दायरा उचेहरा गाँव से लगे हुए आसपास के क्षेत्रों तक बढ़ा लिया और राजू, समलिया, प्रताप के जीवन चर्या का खाका खींचा जाने लगा. दूसरी टीम को ख़बर मिली कि कुछ लोगों ने राजू को एक नहीं दो आदमियों के साथ देखा था और दोनों आदमी बाहरी लग रहे थे. तीनो एक ही साइकिल पर सवार इत्मीनान से बातचीत करते ददर गाँव डिंडोरी रोड की तरफ़ जा रहे थे. पुलिस की पड़ताल में रोज एक नई जानकारी, तो कई शिगुफ़े जुड़ने लगे. इन्हें जरुरत के मुताबिक छंटाई की जाती रही. इसी बीच चरित्र सत्यापन में लगी टीम ने DSP को चौकाने वाली जानकारी दी, कि दुल्हनिया समलिया का किसी भूरा नाम के लड़के के साथ लगाव होने की बात गाँव के लोग दबी छुपी कह रहे हैं. यह बात मुखबिरों ने तस्दीक भी कर दी. कहानी में आये नये पात्र को बिना देरी किए पुलिस ने पूछताछ के लिए बुला लिया, लेकिन इस कदम से पुलिस को भी यकीन नहीं था कि वह अब इस मामलें के उस छोर पर पहुँच गई. जहाँ से आगे जाने पर भौंचक कर देने वाली बात सामने आने वाली है.

क्या था राजू के गायब होने का राज ??, क्या भूरा भी गायब था ? या फरार ?? या फ़िर जिन्दा ही नहीं..??? भूरा ने क्या कहा अपने , राजू , प्रताप और तथाकथित प्रेयसी समलिया के बारे में !!!
समलिया ने अभी तक क्या छुपाया था !! और क्या सही बताया था !!!
क्या पुलिस विवेचना के अनसुलझे रहस्य से परदा हटाने के कगार पर थी या अभी तक रहस्य के बियाबान में ही विचरण कर रही थी.


यह रहस्य रोमांच से सराबोर विवेचना लेख को पूरा पढ़ सकेंगे...
"मनोरथ" http://manorath-sameer.blogspot.com/
पर कुछ ही दिनों में .

समीर यादव

रविवार, 28 सितंबर 2008

हिन्दी ब्लागिंग और हमारी व्यवसायिक चिंता


भाई रवि रतलामी जी के ब्लॉग http://raviratlami.blogspot.com/ से जानकारी मिलने पर अनिल जी आपके ब्लॉग http://diaryofanindian.blogspot.com/2008/03/4500.html पोस्ट का अवलोकन किया। सर्वप्रथम आपको साधुवाद प्रेषित करता हूँ फ़िर अपनी बात कहता हूँ...!! हम हिन्दी लेखन में रूचि रखने वालों के साथ यह मूलभूत समस्या है कि करते कम हैं और बोलते ज्यादा हैं। मैं सबसे यह आग्रह करूँगा कि अपने गिरेबां में झाँककर देखें कि हम हिन्दी ब्लोगिंग की विधा शुरू होने के बाद कितनी निष्ठा, गंभीरता और लगन से हिन्दी लिख रहे हैं। उसकी भाषा शैली, विषयवस्तु पर कितनी मेहनत किया है।


करने से अधिक पाने की लालसा में जो हो सकता है, या जो हो रहा है वह भी नकार दिए जाने के कारण ही हिन्दी और हिन्दी लेखन की यह दशा है। हम हिन्दी की बात करते हैं लेकिन उसके दैनिक जीवन, कामकाज में उपयोग के सम्बन्ध में कभी नहीं सोचते। हम में से अधिकांश लोग मेरी तरह ही चूँकि अंग्रेजी अच्छी नहीं आती इसलिए हिन्दी लेखन करते हैं। हम हिन्दी ब्लोगिंग को अंग्रेजी की ब्लोगिंग से तुलना करते हुए यह क्यों भूल जाते हैं कि तकनीक से जुड़े सभी उपकरण एवं सुविधाएँ पहले अंग्रेजी में और फ़िर आवश्यकता प्रतिपादित होने पर हिन्दी के लिए प्रायोगिक तौर पर तैयार की जाती है।


अंग्रेजी ब्लोगिंग के साथ सुविधा इस बात की है कि तकनीक की दुनिया उसके लिए पढ़े लिखे और भरपेट लोगों की वैसे ही एक फौज खड़ा कर रखती है। अंग्रेजी ब्लोगिंग के सफर को हिन्दी से पहले शुरू कर उस चरण तक पहुँचाया जा चुका है, जहाँ से व्यवसायिक लाभ अर्जन किया जाना सुलभ है। लेकिन अभी हम उस शुरूआती चरण में है, जहाँ इस तरह के श्रम के सम्बन्ध में सोचना....हिन्दी के साथ "बालश्रम" कराने जैसा होगा। मित्रों पहले हम सर्व स्वीकार्य शब्द...NGO जैसे कार्य करते हुए..हिन्दी ब्लोगिंग को एक गंभीर वैविध्यपूर्ण मंच बनायें। फ़िर इससे व्यवसायिक लाभ तो स्वमेव प्राप्त होना आरम्भ हो जाएगा।


हम में से जिनको हिन्दी लेखन में रूचि है, तकनीक और आर्थिक रूप से सक्षम है, उनकी जिम्मेदारी पहले, अधिक और महती है कि वह अलख जगाये...और जगाये रखें । मैं इस बात से सहमत हूँ कि एक बार सक्षमता साबित होने के बाद शेष तो ......आता और होता ही जाएगा। हम इस विषय में थोड़े तंग दिल, भावुक होकर ज्यादा सोच रहें हैं । आवश्यकता व्यवहारिक होने की है..!!! शायद !!!


यह क्या कम है कि अनिल जी, तरुण जी, साकेत जी वहां पहुँचकर तकनीक, रणनीतिक ज्ञान अर्जित किए साथ ही सबके बीच उसे पहुँचाया भी। शेष रणनीतिक बिन्दु तो हिन्दी के ब्लोगर "पंडित", "विशेषज्ञ, और "गुरूजी" अक्सर हम सबके बीच "उड़न तश्तरी" में बांटते ही रहते हैं। जिसके लिए मेरा उन्हें हिन्दी ब्लागर के रूप में न केवल प्रणाम है, अपितु सिपाही के रूप में salute भी है।


और क्या कहा जाये ????.....अभी तो हिन्दी ब्लोगिंग में पैसा है नहीं ? इसलिए आपको तब तक मुझ जैसे लोगों को झेलना ही पड़ेगा।

समीर यादव




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अंतर्मन

मेरो मन अनत कहाँ सुख पायो, उडी जहाज को पंछी फिरि जहाज को आयो.....
जब ... कीबोर्ड के अक्षरों संकेतों के साथ क्रीडा करता हूँ यह कभी उत्तेजना, कभी असीम संतोष, कभी सहजता, तो कभी आक्रोश के लिए होता है. और कभी केवल अपने समीपता को भाँपने के लिए...

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