हिन्दी ब्लागिंग और हमारी व्यवसायिक चिंता
भाई रवि रतलामी जी के ब्लॉग http://raviratlami.blogspot.com/ से जानकारी मिलने पर अनिल जी आपके ब्लॉग http://diaryofanindian.blogspot.com/2008/03/4500.html पोस्ट का अवलोकन किया। सर्वप्रथम आपको साधुवाद प्रेषित करता हूँ फ़िर अपनी बात कहता हूँ...!! हम हिन्दी लेखन में रूचि रखने वालों के साथ यह मूलभूत समस्या है कि करते कम हैं और बोलते ज्यादा हैं। मैं सबसे यह आग्रह करूँगा कि अपने गिरेबां में झाँककर देखें कि हम हिन्दी ब्लोगिंग की विधा शुरू होने के बाद कितनी निष्ठा, गंभीरता और लगन से हिन्दी लिख रहे हैं। उसकी भाषा शैली, विषयवस्तु पर कितनी मेहनत किया है।
करने से अधिक पाने की लालसा में जो हो सकता है, या जो हो रहा है वह भी नकार दिए जाने के कारण ही हिन्दी और हिन्दी लेखन की यह दशा है। हम हिन्दी की बात करते हैं लेकिन उसके दैनिक जीवन, कामकाज में उपयोग के सम्बन्ध में कभी नहीं सोचते। हम में से अधिकांश लोग मेरी तरह ही चूँकि अंग्रेजी अच्छी नहीं आती इसलिए हिन्दी लेखन करते हैं। हम हिन्दी ब्लोगिंग को अंग्रेजी की ब्लोगिंग से तुलना करते हुए यह क्यों भूल जाते हैं कि तकनीक से जुड़े सभी उपकरण एवं सुविधाएँ पहले अंग्रेजी में और फ़िर आवश्यकता प्रतिपादित होने पर हिन्दी के लिए प्रायोगिक तौर पर तैयार की जाती है।
अंग्रेजी ब्लोगिंग के साथ सुविधा इस बात की है कि तकनीक की दुनिया उसके लिए पढ़े लिखे और भरपेट लोगों की वैसे ही एक फौज खड़ा कर रखती है। अंग्रेजी ब्लोगिंग के सफर को हिन्दी से पहले शुरू कर उस चरण तक पहुँचाया जा चुका है, जहाँ से व्यवसायिक लाभ अर्जन किया जाना सुलभ है। लेकिन अभी हम उस शुरूआती चरण में है, जहाँ इस तरह के श्रम के सम्बन्ध में सोचना....हिन्दी के साथ "बालश्रम" कराने जैसा होगा। मित्रों पहले हम सर्व स्वीकार्य शब्द...NGO जैसे कार्य करते हुए..हिन्दी ब्लोगिंग को एक गंभीर वैविध्यपूर्ण मंच बनायें। फ़िर इससे व्यवसायिक लाभ तो स्वमेव प्राप्त होना आरम्भ हो जाएगा।
हम में से जिनको हिन्दी लेखन में रूचि है, तकनीक और आर्थिक रूप से सक्षम है, उनकी जिम्मेदारी पहले, अधिक और महती है कि वह अलख जगाये...और जगाये रखें । मैं इस बात से सहमत हूँ कि एक बार सक्षमता साबित होने के बाद शेष तो ......आता और होता ही जाएगा। हम इस विषय में थोड़े तंग दिल, भावुक होकर ज्यादा सोच रहें हैं । आवश्यकता व्यवहारिक होने की है..!!! शायद !!!
यह क्या कम है कि अनिल जी, तरुण जी, साकेत जी वहां पहुँचकर तकनीक, रणनीतिक ज्ञान अर्जित किए साथ ही सबके बीच उसे पहुँचाया भी। शेष रणनीतिक बिन्दु तो हिन्दी के ब्लोगर "पंडित", "विशेषज्ञ, और "गुरूजी" अक्सर हम सबके बीच "उड़न तश्तरी" में बांटते ही रहते हैं। जिसके लिए मेरा उन्हें हिन्दी ब्लागर के रूप में न केवल प्रणाम है, अपितु सिपाही के रूप में salute भी है।
और क्या कहा जाये ????.....अभी तो हिन्दी ब्लोगिंग में पैसा है नहीं ? इसलिए आपको तब तक मुझ जैसे लोगों को झेलना ही पड़ेगा।
समीर यादव