बुधवार, 27 अगस्त 2008

छत्तीसगढिया उर्जा

धन्यवाद समीर भाई,
"आपने आरम्भ तो कर दिया है......मैं अक्सर यह सोचता हूँ कि रचनात्मकता का समय-प्रबंधन के साथ सम्बन्ध अनुलोम हैअथवा विलोम ?मेरे कार्य ( शासकीय सेवा ) को पारंपरिक ढंग से परिभाषित करना न्यायोचितनहीं होगा फिर भी यह उल्लेखनीय तो कतई नहीं.....आप के प्रेरणा, ज्ञान, माध्यम एवं अप्रतिम उर्जा का स्त्रोत क्या है संजीव भाई.....!"
पठन-पाठन का प्रयत्न निरंतर है...... मेरासमीर भाई,
रचनात्मकता तो स्वाभाविक प्रक्रिया है इसे मैं समय प्रबंधन केकिसी दायरे में नहीं रखता, हां व्यस्तता के समय में जो मन में उमडते हैंउसे छोटी डायरी में समेट लेता हूं बाद में समय मिलने पर ताने बाने बुनताहूं । आपने अनुलोम व विलोम के संबंध में जो पूछा है उसके संबंध में मैंअभी चिंतन कर रहा हूं, बहुत ही गहरा प्रश्न है यह बाद में शेयर करूंगा ।
आपके कार्य से मैं भली भांति परिचित हूं, आपके लिये रचनात्मकता व समयप्रबंधन बहुत कठिन कार्य है फिर भी आपमें जो उर्जा है उससे में स्वयंप्रभावित हूं , यह छत्तीसगढिया उर्जा है भाई जो स्वाभाविक रूप से हम सबके पास है हमने उसे जगाया औरों नें उसे नहीं जगाया ।
पठन पाठन तो टानिक है इससे संप्रेषण व प्रस्तुति बेहतर होती है ।
आपको मेल लिख रहा हूं और भिलाई क्राईम सीएसपी श्री कोटवानी जी का फोन भीरिसीव कर रहा हूं बढिया संयोग है । हा हा हा .....

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अंतर्मन

मेरो मन अनत कहाँ सुख पायो, उडी जहाज को पंछी फिरि जहाज को आयो.....
जब ... कीबोर्ड के अक्षरों संकेतों के साथ क्रीडा करता हूँ यह कभी उत्तेजना, कभी असीम संतोष, कभी सहजता, तो कभी आक्रोश के लिए होता है. और कभी केवल अपने समीपता को भाँपने के लिए...

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