बुधवार, 27 अगस्त 2008

प्रयासों के लिए पट

संजीव भाई !

ऑरकुट मित्र के रूप में आपसे भेंट ने अवचेतन मन के कंदराओं में विचरण करते अनेक अनगढे विचारों को गढ़ने एवम साकार रूप देने के प्रयासों के लिए पट खोलने का कार्य किया है, मेरे शासकीय दायित्य के साथ जिसकी सबसे अधिक अनियमितता होती है वो है समय.........!!!
तथापि आपके प्रयासों का जितना भी अंश ( चाहे वह ०.१% ही सही )मैंने देखा है, अनुकरनिय है। समय का न केवल आपने सदुपयोग किया है अपितु उस पर 'मनमानी' नियंत्रण भी कर रखा है......शायद इसीलिए आप अपने दैन्दिनी से पृथक इतना....आ...आ॥ समय निकाल लेते हैं। मेरे द्वारा जो रचनाएँ आपको प्रेषित की गयी हैं, उन पर आपके विचार saadar pratikshit हैं, इसके अतिरिक्त समय-समय पर मेरे द्वारा वांछित मांगों को अपनी प्राथमिकता सूची में स्थान देंगे. इसी कामना के साथ......आपके विचारों से लाभान्वित होता रहूंगा.....आपका मेल अभी रिसीव किया॥
धन्यवाद !

स्नेहाकांक्षी,
समीर

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अंतर्मन

मेरो मन अनत कहाँ सुख पायो, उडी जहाज को पंछी फिरि जहाज को आयो.....
जब ... कीबोर्ड के अक्षरों संकेतों के साथ क्रीडा करता हूँ यह कभी उत्तेजना, कभी असीम संतोष, कभी सहजता, तो कभी आक्रोश के लिए होता है. और कभी केवल अपने समीपता को भाँपने के लिए...

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