सोमवार, 1 सितंबर 2008

'गुरतुर गोठ'

यह अच्‍छी खबर है कि 25 अगस्‍त तक 'गुरतुर गोठ' के लिये रचनायें
मिलनीशुरू हो जायेगी, उसके टायपिंग की व्‍यवस्‍था करनी होगी,
इसे किसीटायपिस्‍ट से ही करायें, कृति या श्रीलिपि में यदि टाईपिंग
करवायेंगें तोउसे कनर्वटर से किंचित सुधार के बाद, यूनिकोड कनर्वट
हम कर लेंगें ।

इधर मैं भी छत्‍तीसगढी साहित्‍य समिति के संस्‍थापक अध्‍यक्ष
श्री सुशीलयदु जी से रचनाओं के संबंध में अनुमति ले लिया हूं
उन्‍होंनें भी हमेंआर्शिवाद दिया है, दुर्ग-रायपुर के अन्‍य छत्‍तीसगढी
साहित्‍यकारों से भीमैं समय समय पर मिलते रहूंगा । पर रचनाओं
के चयन के संबंध में आदरणीयबुधराम जी से ही स्‍वीकृति लेनी होगी,
यह कार्य आपको करना होगा, पुरानीरचनाओं के संबंध में तो उन्‍हें
आप फोन में ही बतलायेंगें तो स्‍वीकृतिमिल जायेगी किन्‍तु नये रचनाकारों
की रचनाओं के लिये आपको एवं मुझकोस्‍वविवेक से निर्णय लेना होगा ।
मैं चाहूंगा कि 'गुरतुर गोठ' में आदरणीय बुधराम जी का नाम संपादक एवं
हमदोनों का नाम बतौर सूत्रधार या तकनीकि सहयोगी या उप संपादक,
जैसे नेटमैगजीन में लिखा जाता है वैसा ही लिखा जाय, समय समय
पर छत्‍तीसगढीसाहित्तिक सांस्‍कृतिक गतिविधियों पर
आदरणीय बुधराम जी के लेख भीप्रकाशित होते रहें ।

अभी इसे छत्‍तीसगढी का प्रतिनिधि ब्‍लाग के रूप में ही प्रतिष्ठित करतेहैं
बाद में विभिन्‍न स्‍थानों में इसे समाचार के रूप में प्रचारित करनेका
प्रयास करेंगें, छत्‍तीसगढ में तो साहित्‍यकारों की राजनीति के
कारणयह समाचार नहीं बन पायेगा दूसरे प्रदेशों में इसके लिये
प्रयास करेंगें ।धीरे धीरे हम स्‍वयं सुदृढ हो जायेंगें, नेट पत्रिका के
स्‍थान पर इसेइसी रूप में चलने दें, डाट काम होने के कारण
इसे हम नेट पत्रिका याब्‍लाग पत्रिका दोनों नाम दे सकते हैं ।
प्रिंट पत्रिका के रूप में प्रकाशित करने में बहुत झंझट है
और बजट का भीलफडा है और मुख्‍य बात यह कि जब
हम आदरणीय बुधराम यादव जी के नाम काप्रयोग कर रहें हैं
तो मैं नहीं चाहता कि इसके नियमित रहने में कोईरूकावट आवे ।
सभी मुद्दों पर चिंतन करने के बाद मुझे लगता है कि वर्तमानस्‍वरूप
में इसे नियमित करने में हमें कोई भी परेशानी नहीं आयेगी
सिवारचनाओं के टाईपिंग के । वैसे भी हम छत्‍तीसगढी का
प्रतिनिधि ब्‍लाग यापोर्टल के रूप में भी 'गुरतुर गोठ' को यथेष्‍ठ स्‍थान
दे सकते हैं, जोब्‍लाग को नहीं समझते उन्‍हें तो नेट मैगजीन ही
कहना पडेगा और यहां 90प्रतिशत नेट प्रयोक्‍ता भी ब्‍लाग और
इंडिपेंडेंट पोर्टल का मतलब नहींसमझता ।हम दोनों नेट पर इसे
बढावा देनें का हर संभव प्रयास करते रहेंगें । आगेमिल जुल कर
विचार करते रहेंगें ।

इस संबंध में आप आदरणीय बुधराम जी से
जबवे जबलपुर आयेंगें तब चर्चा कर लीजियेगा, 'गुरतुर गोठ' '
सृजन गाथा''कविता कलस' आदि को दिखलाते हुए उनके
आर्शिवाद के बाद हम दोनों शुरू होजायेगें । इस संबंध में आप भी
अपना सुझाव देवें ।

ठीक है भाई ............
शेष फ़िर

संजीव

--http://aarambha.blogspot.com
www.gurturgoth.कॉम

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अंतर्मन

मेरो मन अनत कहाँ सुख पायो, उडी जहाज को पंछी फिरि जहाज को आयो.....
जब ... कीबोर्ड के अक्षरों संकेतों के साथ क्रीडा करता हूँ यह कभी उत्तेजना, कभी असीम संतोष, कभी सहजता, तो कभी आक्रोश के लिए होता है. और कभी केवल अपने समीपता को भाँपने के लिए...

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